विश्व वन्दनीय माँ कैकेयी (काव्य)
मांगे वरदान पिता से,  माँ मेरी ही इच्छा  से। 
   वर मांगो  आज राम से, अपनी ही परिप्रच्छा से।। 
जो मांगोगी हे माता!,  मैं  सहज तुम्हें  दे दूँगा।
नहीं दांया मधुर सम क़ोई, जननी निहाल कर दूंगा।। 
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-: लेखक :-


होडिल सिंह "मधुर"
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-: कवि  कलम से :- 
" ब्रज रज से सना मृदु सुकुंज,  जन मानष पावनी  माँ जाह्नवी  के सुरम्य प्रकृति अंचल में कासगंज-अतरौली उत्तर प्रदेश पथ पर स्थित जनमास्पद मुहम्मदपुर, में जन्मा, माँ वीणा पाणि का स्नेहिल वरद सपूत, इस्ट श्री कृष्ण चंद्र आनंद कंद  भगवान ने साहित्यक रस रास में डुबोया, ब्रज बीथियों में उलझे, मेरे कलेवर कल्मष को धो कर, प्रातः स्मर्णीय आत्मवेत्ता स्वामी निर्मोही जी महाराज ने अपना अंतरंग शिष्य स्वीकार कर कवि भाव जगाया। परम पूज्या  जननी स्व. श्रीमती लोंगश्री जी एवं पूज्य पाद पितु स्व. श्री होतीलाल जी का सु आत्मज, कंधे से कन्धा मिला कर चलने वाली भार्या नेकश्री का प्रेम भाजन एवं एकता के प्रतीक पुत्र सुमन, दुष्यंत एवं मृदुल ने, होडिल सिंह "मधुर" का अर्थ, सम्मान, सुझाव, प्रेरणा, गति, मति तथा पवित्र प्यार दे कर, इस पुनीत कार्य को करने की चौखट तक पहुंचा कर साहित्य सेवा में डुबकी लगाने का सौभाग्य जगा कर कृत-कृत्य कर दिया  ।

मैं , अपने पंकज भाई, सुधी पाठको सहित समस्त 
दिव्य आत्माओं का हृदय से सदैव - सदैव 
ऋणी एवं आभारी रहूँगा। 
 धन्यवाद ! "
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'' मधुर "
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